पर खाम्खां सरे आईना यूंहीं जाता नहीं.
चापलूसी,बेईमानी,और दगा,
ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं.
बात हो सकता है के ये कडवी लगे,
क्या करूं मैं,झूठं बोला जाता नहीं.
दिल तो करता है तुम्हें सम्मान दूं,
मेरी फ़ितरत को मगर भाता नहीं.
कैसे बैठूं मैं तुम्हारी महफ़िल में,
जब तुम से सच मेरा सहा जाता नहीं.
मत दिलाओ दिल को झूठीं उम्मीदें,
इश्क वालों से अब ज़िया जाता नहीं.
जा मरूं मैं दर पे जाके गैर के,
राय अच्छी है,पर किया जाता नहीं.