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Saturday, July 27, 2013

दुआ का सच!

ज़ख्म देता है कोई,मुझे कोई दवा देता है,
कौन ऐसा है,यहाँ जो मुझको वफ़ा देता है!


ये बारिशें भी कब यहाँ साल भर ठहरतीं है,
हर नया मौसम मिरे ज़ख्मों को हवा देता है।



तेरी बातें न करूँ मैं, अगर दीवारों से,
है कोई काम?जो दीवानों को मज़ा देता है!


दुश्मनों से ही है अब एक रहम की उम्मीद,
है कोई दोस्त, जो, मरने की दुआ देता है?

Saturday, October 27, 2012

चाँद और तुम!

अभी कुछ देर पहले.

रात के पिछ्ले प्रहर
चाँद उतर आया था,


मेरे सूने दलान में,

यूँ ही,
मैंने तुम्हारा नाम लेकर 


पुकार था,

उसको ,

अच्छा लगा! उसने कहा,

इस नये नाम से पुकारा जाना,

तुम्हें कोई एतराज तो नहीं,
गर मैं रोज़ उस से बातें कर लिया करूँ?
और हाँ उसे पुकारूं तुम्हारे नाम से,
उसे अच्छा लगा था न!
तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा न?


गर चाँद को मैं पुकारूं तुम्हारे नाम से!

Saturday, May 7, 2011

मै और मेरी तिश्‍नगी!




मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
ख्वाबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

मेरी किस खता के बदले,मुझे ऐसी खुशी मिली है,
मेरी आँख फ़िर से नम है,मेरा दिल भरा भरा है।

मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
तूने  मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।



Tuesday, November 30, 2010

’इश्क और तेज़ाब’

सूर्य की किरणों से ,
क्लोरोफ़िल का शर्करा बनाना!
शुद्ध प्राकृतिक क्रिया है,

इस में कौन सा ज्ञान है,
यह तो साधारण सा विज्ञान का सिद्धांत है!
सौर्य ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन।

एक दम सही फ़रमाया आपने,
मानव, उसका विज्ञान,एवं विज्ञान का ज्ञान महान है!

कुछ और प्राकृतिक या यूँ कहें,
कभी नैश्रर्गिक कही जाने वाली 
प्रक्रियाओं को विज्ञान की नज़र से देखें!

प्रेम! सुना है आपने,
चाहत, इश्क,लगाव,
मोह्ब्बत,प्यार शायद और भी,
कुछ नाम होंगें 

विज्ञान की नज़र में,
दिमाग के अंदर होने वाला,
एक रासायनिक परिवर्तन का
मानवीय संबंधो पर होने वाल प्रभाव!
एक चलचित्र के नायक के मुताबिक
दिमाग का ’कैमिकल लोचा’!

इसी कैमीकल इश्क के मारे,
कुछ ’तथाकथित’ आशिक,
अपनी ’तथाकथित’ माशूकाओं पर
छिडक डालते हैं ’तेज़ाब’
’वीभत्स प्रेम’
का प्रदर्शन!
...............कैमीकली!

Tuesday, May 18, 2010

खामोशी!

कभी खामोश रह कर 




सुनो तो सही,




क्या कहती है?




मेरी ये 


खामोशी!


पर अफ़सोस ये है कि,
तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबरा कर,


अक्सर 


खामोश ही रह जाती है 








मेरी 



खामोशी!

Thursday, April 15, 2010

घर और वफ़ा!

मोहब्बतों से घरों को दुआयें मिलतीं हैं,
जो सच्चे लोग हैं उनको वफ़ायें मिलतीं है|

दर्द मिलने पे भी मुस्कुरा कर देखो!
रोने वालो को कडवी दवायें मिलती है|

कभी बीवी को भी वो ही सम्मान तो दो,
एक दम मां वाली दुआयें मिलती हैं|

उन के किरदार में ही कुछ कमी होगी,
कैसे लोग हैं जिन्हें घर से ज़फ़ायें मिलती है?



Friday, December 11, 2009

दर्द का पता!



कल रात मेरी जीवन साथी संजीदा हो गईं,
मेरी कविताएं पढते हुये,


उसने पूछा,


क्या सच में! 


आप दर्द को इतनी शिद्द्त से महसूस करते हैं? 
या सिर्फ़ फ़लसफ़े के लिये मुद्दे चुन लेतें हैं!  


दर्द की झलक जो आपकी बातों में है,
वो आई कहां से?


मैने भी खूबसूरती से टालते हुये कहा,


दर्द खजाने हैं,इन्हें छुपा कर रखता हूं,
कभी दिल में,कभी दिल की गहराईओं में


खजानों का पता गर सब को बताता,
तो अब तक कब का लुट गया होता!


मेरे किसी दोस्त ने कभी बहुत ही सही कहा था!


’ये फ़कीरी लाख नियामत है, संभाल वरना,
इसे भी लूट के ले जायेंगें ज़माने वाले!’          

Wednesday, December 2, 2009

तीरगी का सच!

Little late for anniversary of 26/11 notwithstanding रचना आप के सामने hai :

इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
 मौला तू ,रास्ता दिखा अपने ज़माल से.


मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.


चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से.


लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से. 


और ये दो शेर ज़रा मुक़्तलिफ रंग के:



ऐसा नहीं के मुझको तेरी याद ही ना हो,
 पर बेरूख़ी सी होती है,अब तेरे ख़याल से.


दो अश्क़ उसके पोंछ के क्या हासिल हुया मुझे?
खुश्बू नही गयी है,अब तक़ रूमाल से.





Wednesday, October 28, 2009

सच गुनाह का!

तेरा काजल जो 
मेरी कमीज़ के कन्धे पर लगा रह गया था,
अब मुझे कलंक सा लगने लगा है.

क्या मैं ने अकेले ही
जिया था उन लम्हों को?
तो फ़िर इस रुसवाई में,
तू क्यों नही है साथ मेरे!

क्या दर्द के लम्हों से मसरर्त 
की चन्द घडियां चुरा लेना गुनाह है,
गर है! तो सज़ा जो भी हो मंज़ूर,


गर नही!तो,


’गुनाह-ए-बेलज़्ज़त, ज़ुर्म बे मज़ा’
कैसा मुकदमा,और क्यूं कर सज़ा?’

Friday, October 23, 2009

सच बे उन्वान!



पलकें  नम थी मेरी,  
घास पे शबनम की तरह,
तब्बसुम लब पे सजा था,
किसी मरियम की तरह.

वो मुझे छोड गया ,
संगे राह समझ. 
मै उसके साथ चला था,
हरदम, हमकदम की तरह.

वफ़ा मेरी कभी 
रास न आई उसको,
वो ज़ुल्म करता रहा, 
मुझ पे बेरहम की तरह.

फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान 
था आदम की तरह.

ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी 
शबे गम की तरह.



Tuesday, August 11, 2009

इश्क का सच!

इन्तेज़ार तेरा किया,मैने ता उम्र मगर,
मौत पे कब किसी का इख्तियार होता है!

तुम मिले न मुझे,न मैं ही तेरा हो पाया,
सच मोहब्बत का है,ऐसे भी प्यार होता है.

किसे फ़ुरसत है मुझे कौन अब तसल्ली दे,
इश्क के बर्बादों का कोई गमगुसार होता है?

Monday, July 27, 2009

गर्द-ए-सफ़र-ए- इश्क!

गर्द-ए-सफ़र-ए-इश्क वो लाया है,
खाक कहता है,तू,उसे जो सरमाया है.

क्यों कर सजे तब्बसुम अब लब पर तेरे,
संगदिल से तू ने क्यूं कर दिल लगाया है.

कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
कभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.

ज़िक्र-ए-वफ़ा भी मेरा क्यूं गुनाह हो गया,
उसकी बेवाफ़ाई को,मैने जां दे के भी निभाया है.