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Tuesday, March 1, 2011

’दाग अच्छे हैं!’


रोना किसे पसंद?
शायद छोटे बच्चे करते हो ऎसा?
आज कल के नहीं
उस समय के,
जब बच्चे का रोना सुन कर माँ,
दौड कर आती थी,
और अपने आँचल में छुपा लेती थी उसे!

अब तो शायद बच्चे भी डरते है!
रोने से!
क्या पता Baby sitter किस मूड में हो?
थप्पड ही न पडे जाये कहीं!
या फ़िर Creche की आया,
आकर मूँह में डाल जाये comforter!
(चुसनी को शायद यही कहते हैं!) 

अरे छोडिये!
मैं तो बात कर रहा था, रोने की!
और वो भी इस लिये कि,
मुझे कभी कभी या यूँ कह लीजिये,
अक्सर रोना आ जाता है!

हलाँकि मै बच्चा नहीं हूँ, 
और शायद इसी लिये मुझे ये पसंद भी नही!
पर मैं फ़िर भी रो लेता हूँ!
जब भी कोई दर्द से भरा गीत सुनूँ!
जब भी कोई,दुखी मन देखूँ,
या जब भी कभी  उदास होऊँ,
मैं रो लेता हूँ! खुल कर!

मुझे अच्छा नहीं लगता!
पर क्या क्या करूँ,
मैं तब पैदा हुआ था जब रोना अच्छा था!
वैसे ही जैसे आज कल,
"दाग" अच्छे होते है,


पर मैं जानता हूँ,
आप भी बुरा नहीं मानेगें!
चाहे आप बच्चे हों या तथाकथित बडे(!)!
क्यों कि मानव मन,
आखिरकार कोमल होता है,
बच्चे की तरह!