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Saturday, May 7, 2011

मै और मेरी तिश्‍नगी!




मेरी तिश्‍नगी ने मुझको ऐसा सिला दिया है,
बरसात की बूँदों ने ,मेरा घर जला दिया है।

मैने जब भी कभी चाहा, मेरी नींद संवर जाये,
ख्वाबों ने मेरे आके ,मुझको जगा दिया है।

मेरी किस खता के बदले,मुझे ऐसी खुशी मिली है,
मेरी आँख फ़िर से नम है,मेरा दिल भरा भरा है।

मै अकेला यूँ ही अक्सर, तन्हाइयों में खुश था,
तूने  मेरे पास आ के, मुझको फ़ना किया है।

जो खुशी मुझे मिली है, इसे मैं कहाँ सजाऊँ,
कहीं जल न जाये दामन, मेरा दिल डरा डरा है।