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Monday, July 27, 2009

गर्द-ए-सफ़र-ए- इश्क!

गर्द-ए-सफ़र-ए-इश्क वो लाया है,
खाक कहता है,तू,उसे जो सरमाया है.

क्यों कर सजे तब्बसुम अब लब पर तेरे,
संगदिल से तू ने क्यूं कर दिल लगाया है.

कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
कभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.

ज़िक्र-ए-वफ़ा भी मेरा क्यूं गुनाह हो गया,
उसकी बेवाफ़ाई को,मैने जां दे के भी निभाया है.

Friday, July 10, 2009

मेरा सच


मै अपने आप से कभी घबराता नहीं,
पर खाम्खां सरे आईना यूंहीं जाता नहीं.

चापलूसी,बेईमानी,और दगा,
ऐसा कोई फ़न मुझे आता नहीं.

बात हो सकता है के ये कडवी लगे,
क्या करूं मैं,झूठं बोला जाता नहीं.

दिल तो करता है तुम्हें सम्मान दूं,
मेरी फ़ितरत को मगर भाता नहीं.

कैसे बैठूं मैं तुम्हारी महफ़िल में,
जब तुम से सच मेरा सहा जाता नहीं.

मत दिलाओ दिल को झूठीं उम्मीदें,
इश्क वालों से अब ज़िया जाता नहीं.

जा मरूं मैं दर पे जाके गैर के,
राय अच्छी है,पर किया जाता नहीं.



Tuesday, July 7, 2009

अरमान



रूठना वो तेरा ऐसे,
कहीं कुछ टूट गया हो जै
से.



बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.


वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
शीशा कोई छूट गया हो जैसे.


बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
तू मगर भूल गया हो जैसे.


कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
साजिंदा रूठ गया हो जैसे.


Friday, June 12, 2009

नज़दिकीयों का सच!(Part II)


रास्ते में संग भी थे,
खार थे, थी मुश्किलें.
मैं मगर आगे न बढता,
लाचारियां इतनी न थीं.

शहर के पागल सजर में
ढूंडता उसको कहां,
उस अज़ी्जो आंशनां की,
नीशानियां इतनी न थीं.

दोस्तों की संगदिली का,
क्या करें सबसे गिला,
इक ज़रा सी बेरुखी थी,
बेईमानियां इतनी न थीं.

वो सरापा सामने था,
या था वो बस एक सराब,
सरे शोरीदः हाल था,
नादानियां इतनी न थीं.

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सरापा :- आमने सामने/Face to face

सराब :- मृगतृष्णा/Mirage

सरे शोरीदः :-इश्क का पागलपन